Thursday, 13 January 2022

आदिवासी मीणा (एक आदिम जनजाति)

किसी जिज्ञासु ने पूछा भाईसाहब ये मीणा क्या होते है । 
तो एक कलम के शिकारी ने शब्दों की समरसता से जबाब दिया - बैसे भाईसाहब ये मीणा होते कुछ नही, पर है बहुत कुछ । मीणा एक जनजाति है यह पहाड़ी -ढलानो और मैदानी क्षेत्रों मे पायी जाती है । ये जनजाति ज्यादातर जयपुर , दौसा , करौली , टोक , सबाई माधौपुर , अलवर , कोटा मे पाई जाती है लेकिन प्रभाव पूरे राजस्थान मे रखती है भले बातों से ही क्यों न हो , । गरीबी इस कदर है की यदि नौकरी भी लगे  ईमानदारी की तो 5 साल तो माथे के चुकाने मे लगा देते है , फिर लुगाई बच्चे मतलब एक मोटरसाईकिल खरीदने के लिए भी 50 बार सोचणा पड़ता है । हां बैसे हमारे ऐसे भी है यदि 1 लाख रूपये भी घर मे हो गये तो टीटी हो जाते है , यानि शांति कम है पैसे को पचाना सीख रहे है अभी ।
हमको सब दुनिया बेवकूफ बणा सकती है लेकिन हम आजतक किसी को बेवकूफ नही बणा सकै । बात यदि नाक की आ गयी तो नुक्ता पूरे गांव को होवेगा, भात मे 3 लाख ही देवेगे, दहेज मे तो आग पाड देगे , भले बाद मे एक दो खेत बेच ही क्यों न दे ,। जामणा तिया टिका , अरे मतलब खतरनाक आदमी है । 
यदि हमको सुबह छाछ-राबडी और रात मे दुध-राबडी ना मिले तो नींद ना आवै , । घी की तो गंगाजी हमारे द्वार से ही निकलती है । इसलिए हम आधा घी तो भगवान् , भैरौजी, हिरामन, पठाण पर ही चढा देते है । 
मेहमान को भगवान् समझते है यदि आपके नाम के पीछे मीणा है तो समझ लो , 2 घंटे मे 17 रिश्तेदारी निकालकर , रिश्ता जोड़ ही लेगे । क्या बताये महाराज राजनीति मे वर्तमान हालत ऐसी है हमारी की ना हिन्दू ही है ना मुसलमान ही है । कुछ दिन पहले अलग ही विचारधारा से जुडे थे , म्हारा मटा की बा भी कोन चली दुकान , शटर लगा लिया ।
दुनिया कान काट लेती है इस जमाने मे , लेकिन हमारे भाई इतने भोले है की यदि किसी ने थोड़ा भी चणे के पेड़ पर चढा दिया तो चाय की दुकान से 200 रूपये हँसते हँसते ढिला करके आ जायेंगे ।
हमारे यहाँ दिन की शुरूआत भैंस को गाली से शुरू होती है भैंस की गाली पर खत्म होती है ( बड री छ्दयाड , औ मान जा लौहडी, तोकू तो दयारी कसाई पे कटाऊगी ) 
बैसे तो हम दिन मे पचास बार लडते है लेकिन यदि बात मीणा एकता की आ गयी तो सामने बाले का चामडा चमनलाल बणाने मे टाईम नही लगाते ।
हम अपना मनोरंजन देशी मीणा गीत , पद , कन्हैयाऔ से करते है । कुछ गीत हमारे इतने तीखे होते है की सुण लिये तो शरीर की रौम रौम खडी कर देते है ।
हमारे माँ-बाप का एक ही उदेश्य है चाहे हमारे शरीर मे सिर्फ  हड्डी रह जाये लेकिन बेटा बेटी पढे । जमीन , गहने बेचकर भी हमे हमारे माँ-बाप अच्छी शिक्षा दिलाते है और यही कारण है की हम पूरे भारत मे नाम रौशन करते है। 
हमारे समाज मे बेटा बेटी मे कोई भेद नही। 
हमे किसी फर्जी लोगों से देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेणे की जरूरत नही है क्योंकि हम हमारी जनसंख्या के प्रतिशत से ज्यादा संख्या मे सेना , पुलिस और अर्धसेनिक बलो मे सेवा देते है । और बैसे हम किसान है तो सर्टिफिकेट माँगने की हिम्मत तो हमसे कोई करता ही नही। बैसे तो हम हर विभाग मे कायम है लेकिन रेलवे से हमारा अलग ही लगाव है । 
हमारी भेषभूषा तो दुनिया मे निराली है और सबसे मँहगी भी , । पूर्वी राजस्थान के व्यापारी वर्ग को हमारे लहगा लूगडी और धौती कुर्ता ने ही चला रखा है , । वरना हमने तो करोड़ पतियो की 50 रूपये के पजामा और 300 रूपये की साडी मे घूमते देखा है ।
हमारे अपनेपन की दुनिया दीवानी है क्योंकि हम यदि कन्याकुमारी से लेकर जम्मू तक घूमने जाते है तो कमरा या होटल नही , सिर्फ मीणा नाम ढूढते है ।
नेता नूती तो जो थमारे है वही हमारे है एक दो को छोड़कर सब घर बाधते है ।
हमारे यहाँ शादियो मे प्लेट से नही शक्कर से आदमी की तुलना करते है । हमारे यहाँ बारात गिनते नही, आईडिया बताया जाता है । यदि बारात धणी ने 400 बताई है तो खाणा 700 का बणेगा , भले सुबह भैंस ही चरै, रसगुल्लान कू ।जितना आपके पूरी शादी मे मिठाई बणाते है इतना तो हम बहण बेटी के बाध देते है वो भी शादी के बाद ।
जितना तुम्हारा परिवार साल भर घी खाते है इससे दुगणा तो हमारे लुगाई जापा मे खा जाती है ।
यदि शादी मे डीजे नही तो शादी का मजा नही। नियम हमारे पटेल बणाते है और हर नियम पटेल के कारण मे ही टूटता है । 
फिजूल खर्ची मे हमे भारत रत्न दिया जाणा चाहिए । 
स्वाभीमान हममे कूट कूट कर भरा है मेहनत करते है भीख नही माँगते , ना अपने हक को कभी छोडते , चाहे जान निकल जाये । 
हमारी जाति मे अबतक कोई भिखारी नही है । 
उच्च पदो पर बैठे अधिकारी , कर्मचारी , नेता हमारी शान है । 
हर खेती करता किसान और हमारा भाईचारा हमारी जान है ,,....!
हमे मौका नही मिलता , दिल के अरमान लिखने और बोलने का :। नही तो हममे ऐसी कई कलम सामने बाले मुंह पर ताला ठोंक सकती है ।

Wednesday, 31 March 2021

वो भी क्या दिन थे....

पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें ।

पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ।

“पुस्तक के बीच विद्या , पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास था"। 

कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था ।

हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर कवर चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था ।

माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी , न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी। 
सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।    

एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।    

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा अहम हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि अहम होता क्या है ?

पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी , ”पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश होते थे" , 
पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे , पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुवा। 

हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, क्योंकि हमें "आई लव यू" कहना नहीं आता था ।

आज हम गिरते - सम्भलते , संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं , कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं ।

हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है , हमें हकीकतों ने पाला है , हम सच की दुनियाँ में थे।

कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे ।

अपना अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं , शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं ।

हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक साथ थे, काश वो समय फिर लौट आए |
सुखदेव बैनाड़ा

Monday, 4 November 2019

गाँव मरता जाए,,बचाने कोई ना आये😭


गाँव खंडहर में तब्दील हो रहे हैं. बुज़ुर्ग माता-पिता मौत का इंतजार अथाह अकेलेपन में कर रहे हैं. जवान बेटे दूर शहरों में पाँच-दस हज़ार की नौकरियाँ कर रहे हैं और उनकी बीवियाँ पति की कमाई आने का इंतज़ार.

गांव में जो नौजवान बचे हैं वो मोबाइल पर फ़ेसबुक और वॉट्सऐप में लगे हुए हैं. इनके पास मोटरसाइकिलें भी हैं और कुछ लोग सड़क पर शौच करने इसी से जाते हैं. सरकारी स्कूल दलित बच्चों के लिए है जहाँ उन्हें खिचड़ी खाने के लिए लाया जाता है. दस बारह-हज़ार वाले टीचरों के लिए यह पार्ट टाइम जॉब है.

गाँव से सवर्णों का भयावह पलायन है. घरों में ताले लटक रहे हैं. जो गाँव में किसी वजह से बचे हैं वो ख़ुद को बदकिस्मत बताते नहीं थकते. स्कूल का मैदान कभी बच्चों और नौजवानों से शाम में भर जाता था वो किसी डरावनी जगह की तरह लगता है.

सवर्णों के पास ज़मीन थी जिसे बेच शहरों में शिफ्ट हो रहे हैं, तो पिछड़ी जातियों और दलितों में ज़मीन का मालिक बनने की हसरत है.

लोगों में मेहनत को लेकर भरोसा कम हुआ है. गाँव में विरले ही ऐसे होते थे जिनकी तोंद निकलती थी. अब यह आम बात हो गई है. डायबिटीज़ आम बीमारी बनती जा रही है. लोग शहरियों की तरह मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं.

बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाने की होड़ है लेकिन दसवीं से पहले ही 95 फ़ीसदी बच्चे बिहार बोर्ड यानी हिन्दी मीडियम में आ जाते हैं. इसका नतीजा ये हो रहा कि वो न हिन्दी सीख पा रहे न अंग्रेज़ी.

नेहरू-गांधी परिवार को लेकर वॉट्सऐप ने युवाओं के बीच ख़ूब नफ़रत बढ़ाई है. युवा मानने को तैयार नहीं होते कि फ़िरोज़ गांधी पारसी थे. नेहरू को सब देशद्रोही और पाकिस्तान परस्त मानने लगे हैं. गाँव मर रहा है. बेमौत
सुखदेव
टोडाभीम(राजस्थान)

Friday, 20 September 2019

बदलती जिंदगी


हमारी आखरी पीढ़ी होगी....

बैलगाड़ी ऊँटगाड़ी में बैठ कर मौजी खाने वाली , खेत मे बैल हल चलाते समय कुली काड़ते समय मोजी खाना, ट्रॉली का ढाला पर बैठ कर मैला या बरात में जाना, खेत मे जाते समय तार की बग्गी व बंगड़ चलना, एक साइकिल पर चार चार दोस्त को बैठा कर घूमते रहना , स्कूल की ड्रेस पहन कर रिश्तदारी में जाना, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी में फिल्म मैच सीरियल आदि देखना , सर्दियो में कोउ पर तापना, लेज से कुआँ में से पाणी खिंच कर पीना , धड़ीमार धोखा खेलना ,लंबी घोड़ी व फुसफुस घोड़ी खेलना, खाती छोड़ो व आसपास खेलना गुलाम लाखड़ी, रामलीला देखना ,  साइकिल का सर्कस देखना ये सब करने वाली व देखने वाली ये अपनी पीढ़ी आखरी होगी....

एक गेंद लाने के लिए  सभी दोस्तों से एक एक रुपया उगाना , कपड़े की गेंद बना कर उससे खेलना, स्कूल में बोर्ड पर लिखे शब्दो को मिटाने के लिए डस्टर घर से बना कर ले जाना..काम करने के लिए पासबुक नही होने पर दोस्त से पासबुक मांगना, पेट दर्द का बयाना कर के रेस्ट में घर आ जाना , सुबह शाम अंटा खेलना , चिमनी की रोशनी में पढ़ाई व होमवर्क करना , जब छोटे बच्चे थे तब तीन पहिये के गुढ़कले पैदल पैदल चलना ऐसी कई बाते हैं जो धीरे धीरे खत्म होती जा रही हैं ,
और आनी वाली पीढ़ी तो इन सब खेल व इन बातों को बिल्कुल भूल जायेगी ...
पोस्ट पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया ....
----सुखदेव
✍️✍️✍️✍️ जय हो ✍️✍️✍️

Sunday, 12 August 2018

आज मौसम सुहाना है...👍

किताबे-शौक़ में क्या-क्या निशानियाँ रख दीं
कहीं पे फूल, कहीं हमने तितलियाँ रख दीं।

कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे
छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं।

यही कि हाथ हमारे भी हो गए ज़ख़्मी
गुलों के शौक में काँटों पे उंगलियाँ रख दीं।

Friday, 10 August 2018

मेरे अजनबी हमसफ़र


मेरे अजनबी हमसफ़र.... sUkHdEv

वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी..

. उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो..कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही।

शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी।

देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था।

मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा...फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया...

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लगभग 1 घंटे के बाद टीटी आया और उसे हिलाकर उठाया।
“कहाँ जाना है बेटा”

“अंकल दिल्ली तक जाना है”

“टिकट है ?”

“नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”

“अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा”

“ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”

“ये तो गलत बात है बेटा …..पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी”

“सॉरी अंकल …. मैं अलगे स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई … और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी….” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी टीटी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे दिल्ली तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन देदी।
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टीटी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर हंस तो नहीं रहा था.
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.थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं …

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दिल्ली स्टेशन पर कोई जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे, वरना वो समय पर गाँव नहीं पहुँच पायेगी।

. मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था, दिल कर रहा था कि उसे पैसे दे दूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो … और रो मत ….
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लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था। उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे।

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बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने लगे जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना कहलाऊं।

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फिर मैं एक पेपर पर नोट लिखा,“बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए देख रहा हूँ, जानता हूँ कि एक अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही है इसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ , तुम्हे कोई अहसान न लगे इसलिए मेरा एड्रेस भी लिख रहा हूँ …...

.जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो …. वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो …
.. अजनबी हमसफ़र ”
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एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे भेजा है।
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नोट मिलते ही उसने दो-तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई उसकी तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा।
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लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था...थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस की।
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लगा जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था। उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया ….

फिर चादर का कोना हटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर जैसे सांस ले रहा था मैं..
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.पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी। जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी … ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर ही रुकी थी। और उस सीट पर एक छोटा सा नोट रखा था ….. मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया ...

और उस पर लिखा था … Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र …..आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …..
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मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए आनन – फानन में घर जा रही हूँ। आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी …..
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उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ ….जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी। उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे ….
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. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाये ….
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. आज 1 साल बाद एक ख़त मिला ….आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ …. लेकिन ख़त के ज़रिये नहीं आपसे मिलकर … नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था …. और आखिर में लिखा था ...
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. तुम्हारी अजनबी हमसफ़र ……

Monday, 29 January 2018

क्रांति तो होनी है....

अगर खिलाफ है होने दो, चाँद थोड़ी है
ये सब धुआ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है

मुझे खबर है के दुश्मन भी कम नहीं
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद है कल नहीं होंगे
किरायेदार है ज़ाती, मकान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है-

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साजिशे हवाऐं इस कद्र करने लगी है
पक्तियाँ शाख से टूटकर गिरने लगी है।

जहर घुलता जा रहा है फिजाँओ मे
कि साँस भी बार बार उखाड़ने लगी है।

मिलकर घर का बोझ उठाएं हुऐ थी
वो चार दीवारे भी अब हिलने लगी है।

चिराग अंधेरो से लड़ते रहे रात भर
रात रौशनी के साये मे पलने लगी है।

कभी मुस्कान थी,हर दिल मे भरी
अब माथे मे सलवटे पड़ने लगी है।

सारा दिन धुंध से सूरज लड़ता रहा
कि अचानक फिर शाम ढलने लगी है।

Sunday, 14 January 2018

अजब-गजब संस्कृति और दिखावा



अजब गजब संस्कृति और दिखावा

पैदा होते ही बेटा हुआ तो कुआं पूजन , बेटी हुई तो - या होई है चुडेल ।
माँ-बाप के लिए दोनो  बेटा समान , शादी होते ही  न्यारा , बडा बेटा रखेगा माँ को , छोटा बेटा बाप को , कर दिया अलग अलग , न्यारा तो एक दिन होना ही है ।
बहु घूघट मे गाली दे तो संस्कृति , घूघट ना रखकर बाप समान इज्जत दे तो , पडौसियो के ताने , क्योंकि संस्कृति ।
किसी गरीब के बच्चे के लिए 5000 रूपये पढाई के लिए देने बाला कोई नही, लेकिन नुक्ते के लिए 50000 हजार देने बाले हजारों , संस्कृति है भैया ।
अनपढ़ बेटी के लिए रिश्ता ढूंढ़ने मे पाँच साल लगा दिये , किसी की बेटी को जयपुर पढने भैज दिया तो ताने , बिगड़ जायेगी । संस्कृति ।
भैंस ने दुध नही दिया , दुध फट गया , बेटा नौकरी नही लगा , बुखार , पेट मे दर्द , अऊत , भूत , जिंद , सबका उपचार है , झाडा फूख । या फिर बालाजी के पाँच किलो घी । संस्कृति ।
आदमी दिनभर ताश खैलौ दुकान या चौराहे पर , घर मे सही ढंग की सब्जी ना बणी तो पिटाई , संस्कृति - क्योंकि बामणा का ने कही है पति परमेश्वर होता है ।
बच्चे सर्दी मे ठिठरते रहो , लेकिन बाप शाम को दारू अवश्य पियेगा । सोमरस है भैया , वेदों मे लिखा है ।
बेटा किसी की लड़की को भले घर ही ले आऔ , बेटी तो नज़र निचे करके ही जायेगी । क्योंकि संस्कृति है भैया । और फिर अपणा तो बेटा है , बेटी बाडा जाणै ।
जितना प्रचार किसी गरीब के बेटे का नौकरी लगने पर नही होता , उससे ज्यादा प्रचार 500 रूपये तीन पत्ती मे जीतने बाले का होता है ।
गरीब की लुगाई प्रसब पीडा मे मर जाये , कोई बडी बात नही । अमीर की भैंस ने दुध नही दिया , हजारों आदमी डाँक्टर बणकर पहुँच जायेंगे ।
ससुर , बहु को गाली देकर घर से निकाल देगा , कोई बडी बात नही । लेकिन बहुत ने शर्ट की जगह सिर्फ कब्जा या ब्लाउज पहन रखा है । पूरे गाँव मे प्रचार होगा । संस्कृति है ।
बूढ़े माँ-बाप को कोई रोटी मत दो , मकान से निकालकर टूटे छप्पर मे डाल दो , बच्चों की शादी के समय आनन फानन मे नहला धुलाकर समाज के सामने ढोग कर दो , बहु बेटी खूब गाली दो , कोई नही बोलेगा । लेकिन मरने पर यदि नुक्ता ना किया तो ताने देकर 10 साल बाद भी करा लेगे । संस्कृति ।
बहु यदि महाडायन है किसी ने गलती से कुछ कह दिया , कर दिया केस , दहेज का । सब गाली देणे आ जायेंगे , बिना मामले को समझे । लेकिन बहु दिनभर माँ-बाप से मीठी मीठी गाली देने पर सब चुपचाप । संस्कृति ।
भात जामणा , 30 लूगडी , 15 बेस , और 25 धौती । पहनेगा कोई नही । लेकिन भेजना जरूर पडेगा । पता सबको है ये व्यर्थ है लेकिन किसी ने बोल दिया तो - छौरा पिढ्यौ तो है पण गुण्यौ कौन । संस्कृति ।
घर मे पल्सर खडी है चलाणे के लिए , लेकिन बहु बेटी रात मे निकलती है झाडियो मे शौच के लिए । (खैर शौचालय निर्माण और इसके महत्व मे हमारा समाज बहुत आगे है इसका हमे गर्व है )
भाई के बेटों को कभी दो रूपये नही लगाये पढाई के लिए , लेकिन भाई जमीन बिकने पर , खरीदकर , पूरा श्रेय ले लेगे ,।
बडे भाईसाहब ने छौटो को पढाकर पूरी जिंदगी दाव पर लगा दी , लेकिन छोटे की लुगाई आते ही , कभी भाई बच्चों को दो रूपये ना दे सका । पत्नी व्रता नारा है भैया । खुद के भी बच्चे है ।
लड़का खुले सांड की तरह चौराहे पर लड़की छेडता हो कोई बुराई नही । लड़की ने जींस क्या पहन लिया , माँ-बाप का मरण आ गया ।
समाज मे पटेलो ने पंचायत से शादी मे dj बंद करा दिये , लेकिन दहेज खुले आम चालू रहेगा ।
किसी महिला का सुड्डा गायन फूहड हो गया , लेकिन टीबी मे चड्डी पहने हिरोईन फूहड नही शान है ।
किसी औरत का पति मर गया तो उसपर हर तरीके के इल्जाम लगाने हजारों पहुँच जायेंगे , तरह तरह की बातें करेंगे , लेकिन उसकी सहायता की बारी आई तो काम के बदले काम । वाह रे भगवान ।
माँ-बाप ने अपने खून पसीने से बेटे को दिल्ली मे अफसर बणा दिया , और बेटे ने एक पल बोल दिया - तुममे दिमाग नही है चुपचाप भगवान् का नाम लो , ।
.
चाहे शब्द गलत हो ये मेघ-कलम के लेकिन भावना गलत ना हो सकती .,........
दक्षिण भारत से सिर्फ लेखन ही सही, धरातलीय समाजसेवा नही हो सकती .....,!

Wednesday, 27 December 2017

ग्रामीण बच्चों का जीवन



=== ग्राम्य जीवन ====== 

हम देहात से निकले बच्चे थे। पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे. स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी ..
कक्षा के तनाव में स्लेटी खाकर हमनें तनाव मिटाया था। स्कूल में टाट पट्टी की अनुपलब्धता में घर से खाद या बोरी का कट्टा बैठने के लिए बगल में दबा कर भी ले जातें थे।.

कक्षा छः में पहली दफा हमनें अंग्रेजी का कायदा पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी स्मॉल लेटर में बढ़िया एफ बनाना हमें बारहवीं तक भी न आया था। .
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हम देहात के बच्चों की अपनी एक अलग दुनिया थी , कपड़े के बस्ते में किताब और कापियां लगाने का विन्यास हमारा अधिकतम रचनात्मक कौशल था। तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते (नई किताबें मिलती) तब उन पर गत्ता चढ़ाना हमारे जीवन का स्थाई उत्सव था। .

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ब्लू शर्ट और खाकी पेंट में जब हम इंटरमीडिएट पहूँचे तो पहली दफा खुद के कुछ बड़े होने का अहसास हुआ। गाँव से 4-5 किलोमीटर दूर के कस्बें में साईकिल से रोज़ सुबह कतार बना कर चलना और साईकिल की रेस लगाना हमारे जीवन की अधिकतम प्रतिस्पर्धा थी। हर तीसरे दिन पंप को बड़ी युक्ति से दोनों टांगो के मध्य फंसाकर साईकिल में हवा भरतें मगर फिर भी खुद की पेंट को हम काली होने से बचा न पाते थे। स्कूल में पिटते मुर्गा बनतें मगर हमारा ईगो हमें कभी परेशान न करता
...... हम देहात के बच्चें शायद तब तक जानते नही थे कि ईगो होता क्या है ... क्लास की पिटाई का रंज अगले घंटे तक काफूर हो गया होता और हम अपनी पूरी खिलदण्डिता से हंसते पाए जाते। .
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रोज़ सुबह प्रार्थना के समय पीटी के दौरान एक हाथ फांसला लेना होता मगर फिर भी धक्का मुक्की में अड़ते भिड़ते सावधान विश्राम करते रहते। हम देहात के निकले बच्चें सपनें देखने का सलीका नही सीख पातें अपनें माँ बाप को ये कभी नही बता पातें कि हम उन्हें कितना प्यार करते है।
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हम देहात से निकले बच्चें गिरतें सम्भलतें लड़ते भिड़ते दुनिया का हिस्सा बनतें है कुछ मंजिल पा जाते है कुछ यूं ही खो जाते है। एकलव्य होना हमारी नियति है शायद।
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देहात से निकले बच्चों की दुनिया उतनी रंगीन होती वो ब्लैक एंड व्हाइट में रंग भरने की कोशिश जरूर करतें हैं। पढ़ाई फिर नौकरी के सिलसिलें में लाख शहर में रहें लेकिन हम देहात के बच्चों के अपने देहाती संकोच जीवन पर्यन्त हमारा पीछा करते है नही छोड़ पाते है..

सुड़क सुड़क की ध्वनि के साथ चाय पीना अनजान जगह जाकर रास्ता कई कई दफा पूछना। कपड़ो को सिलवट से बचाए रखना और रिश्तों को अनौपचारिकता से बचाए रखना हमें नही आता है। अपने अपने हिस्से का निर्वासन झेलते हम बुनते है कुछ आधे अधूरे से ख़्वाब और फिर जिद की हद तक उन्हें पूरा करने का जुटा लाते है आत्मविश्वास।

.
हम देहात से निकलें बच्चें थोड़े अलग नही पूरे अलग होते है... अपनी आसपास की दुनिया में जीते हुए भी खुद को हमेशा पाते है थोड़ा प्रासंगिक थोड़ा अप्रासंगिक

Saturday, 18 November 2017

ये मुझे पसंद हैं....👍


1~~काशिफ़ हुसैन

याद वो उम्र भर रहेगा क्या

दिल इसी काम पर रहेगा क्या

क्या बिखर के रहेंगे ख़्वाब मिरे

आइना टूट कर रहेगा क्या

क्या हुआ अब इधर न आएगी

हब्स ये उम्र-भर रहेगा क्या

वो जो इक शख़्स मेरे अंदर है

मेरे अंदर ही मर रहेगा क्या

मैं हवा की तरह हूँ आवारा

तू मेरा हम-सफ़र रहेगा क्या

नींद उड़ती रहेगी आँखों से

जश्न ये रात-भर रहेगा क्या

2~~
नज़र मिली तो नज़ारों में बाँट दी मैं ने

ये रौशनी भी सितारों में बाँट दी मैं ने

बस एक शाम बची थी तुम्हारे हिस्से की

मगर वो शाम भी यारों में बाँट दी मैं ने



देख रहा है दरिया भी हैरानी से,
मैं ने कैसे पार किया आसानी से।।

नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ,
कुछ रिश्ता है मेरा बहते पानी से।।

हर कमरे से धूप, हवा की यारी थी,
घर का नक्शा बिगड़ा है मनमानी से।।

अब जंगल में चैन से सोया करता हूँ,
डर लगता था बचपन में वीरानी से।।

दिल पागल है रोज़ पशीमाँ होता है,
फिर भी बाज़ नहीं आता मनमानी से।।
sUkH

Friday, 11 August 2017

My sad story (Update: Now Happy Story) / Struggle of Sukhdev Meena Bainada

11-08-2017

I'm sUkHdEv mEeNa.....

I don't have a success story but a sad story which is still incomplete because people say every sad beginning has a beautiful end 

1.SSC CHSL 2012- failed in exam

2.SSC CGL 2012- failed in prelims

3.JAIL PRAHARI 2012- physical didn't attend

4.SSC CGL 2013 -failed in prelims

5.SSC CGL 2013 (Re-Exam) -failed in mains

6.SSC CHSL 2013- failed in exam

7.SSC CGL 2014- failed in mains

8.SSC CHSL 2014- failed in exam

9.IBPS Clerk & PO 2014- failed in prelims

10.SSC CPO 2015- physical didn't attend

11.SSC CGL 2015- failed in mains 

12.SSC CHSL 2015- waiting for final result

13.IBPS Clerk & PO 2015- failed in mains 

14.SBI PO 2015- failed in mains

15.LIC ADO 2015 -interview didn't attend

16.FCI 2015- failed in exam

17.RRB NTPC 2015- waiting for final result

18.SSC CPO 2016 -failed in physical

19.SSC CGL 2016 -failed in final merit

20.SSC CHSL 2016- waiting for main's result

21. IBPS Clerk 2016- in Reserve list

update:08Jan2025 01:04am

22. RRB NTPC 2015- SELECTED (Station Master)

23. DMRC 2016- SELECTED (CRA)

24. SSC CHSL 2016- SELECTED (PA/SA)

25. RSMSSB PATWARI 2016- SELECTED

I have seen a lot of failure

Some people call me a failure

Some time I get annoy 
But still somewhere in my heart I know I am not a failure
I am still fighting
I have not give up yet
Yes I fear of losing 
But still fighting
Because I know one day I will make it 
I will shut all those mouths who questioned my potential
My story is still incomplete
May be good is choosing a beautiful climax for it. 
I m hopeful and I am ready 
CGL 2017 is approaching 
May be this is my destiny...

update:08Jan2025 01:23am

i appeared in CGL-17 pre examination and qualify but didn't go to write mains exam bcz that time i was not Berojgaar and already joined DMRC as CRA in feb2018 and my training was going on. after that i didn't appear in any examination. Now i'm happy with my decision. currently i'm living in Model Town Delhi with my wife and son. Today my salary is 90k+ and distance from my hometown is only 270km

Hobby: Travelling like a backpacker in Nomadic style

state/ut/country have been explored till the date: (Leh-ladakh, J&K, Himachal, Uttrakhand, Haryana, Delhi, Rajasthan, UP, MP, Sikkim, Gujrat, Goa, Tamilnadu)

{India, Vietnam, Thailand, Singapore, Kazakhstan} 

My Instagram: @Nomad_sukhi 

God bless me...😃😃

📚📓📒📃🗞📑📙📚🤗😐😎

Saturday, 29 April 2017

दोस्त और यादें

*Harivansh Rai Bachhan's poem on FRIENDSHIP :*
_________________________________
....मै यादों का
    किस्सा खोलूँ तो,
    कुछ दोस्त बहुत
    याद आते हैं....
...मै गुजरे पल को सोचूँ
   तो, कुछ दोस्त
   बहुत याद आते हैं....

_...अब जाने कौन सी नगरी में,_
_...आबाद हैं जाकर मुद्दत से...._
....मै देर रात तक जागूँ तो ,
    कुछ दोस्त
    बहुत याद आते हैं....
....कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
....कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
....मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
....कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
_...सबकी जिंदगी बदल गयी,_
_...एक नए सिरे में ढल गयी,_
_...किसी को नौकरी से फुरसत नही..._
_...किसी को दोस्तों की जरुरत नही...._
_...सारे यार गुम हो गये हैं..._
...."तू" से "तुम" और "आप" हो गये है....
....मै गुजरे पल को सोचूँ
    तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....
_...धीरे धीरे उम्र कट जाती है..._
_...जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,_
_...कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है..._
  _और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है ..._
....किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
....फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते...
_....जी लो इन पलों को हस के दोस्त,_
    _फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ...._
*....हरिवंशराय बच्चन*

हर रोज़ गिर कर भी मुकमल खड़े है 😊 देख ज़िंदगी मेरे होंसले तुझसे भी बड़े हैं 😎


Saturday, 15 April 2017

आजकल थोड़ा अपसेट हूँ। 🙃🙁☹

रिश्तें निभाना हर किसी के बस की बात नहीं,
खुद को तोड़ा है कई बार मैंने किसी और को बनाने के लिए !!
👉👉👉👇👇👇😎😔😨😢

गलतियों से जुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं,
दोनों इंसान है, खुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं;
तू मुझे और मैं तुझे इलज़ाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता, तू भी नहीं मैं भी नहीं;
गलतफहमियों ने कर दी दोनों में पैदा दूरियाँ,
वरना फितरत का बुरा तू भी नहीं मैं भी नहीं;
अपने अपने रास्तों पे दोनों का सफ़र जारी रहा,
एक पल को रुका तू भी नहीं मैं भी नहीं;
चाहते दोनों बहुत एक दुसरे को है मगर,
ये हकीकत मानता तू भी नहीं मैं भी नहीं.......!!!!

(उम्मीद करता हूँ जिनके लिए लिखा है वो समझ गए होंगे)

Tuesday, 11 October 2016

आपको याद है:साँझी

छोरी माट्टी ल्याया करती
मुह अर हाथ बणाया करती
गोबर तै चिपकाया करती
नू सांझी बणाया करती
कंठी कड़ूले पहराया करती
आखं मै स्याही लाया करती
चूंदड़ भी उढाया करती
नू सांझी नै सजाया करती
रोज सांझ नै आया करती
गीत संझा के गाया करती
घी मै मिट्ठा मिलाया करती
नूं सांझी नै जीमाया करती
सांझी का फेर आया भाई
अगड़ पड़ोसन देखण आई
कट्ठी होकै बूझै लुगाई
सांझी तेरे कितने भाई
फेर सांझी की होई विदाई
छोरी छारी घालण आई
हांडी के म्हा सांझी बैठाई
गैल्या उसका करदिया भाई
छोरी मिलकै गाया करती
हांडी नै सजाया करती
एक दीवा भी जलाया करती
फेर जोहड़ मै तिराया करती
हम भी गैल्या जाया करते
जोहड़ मै डल़े बगाया करते
सांझी नै सताया करते
फोड़ कै हांडी आया करते
ईब गया जब गाम मै भाई
सिमेंट टाईल अर नई पुताई
सारी भीत चमकती पाई
पर कितै ना दिखी सांझी माई
...कितै ना दिखी सांझी माइ 

Wednesday, 28 September 2016

जब तक तोडे़ंगे नही, तब तक छोडे़ंगे नही

मँज़िले बड़ी ज़िद्दी होती हैँ ,
हासिल कहाँ नसीब से होती हैं !
मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं ,
जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैँ !
जीत निश्चित हो तो,
कायर भी जंग लड़ लेते है !
बहादुर तो वो लोग है ,
जो हार निश्चित हो फिर भी मैदान नहीं छोड़ते !
भरोसा अगर " ईश्वर " पर है,
तो जो लिखा है तकदीर में, वो ही पाओगे !
मगर , भरोसा यदि " खुद " पर है ,
तो ईश्वर वही लिखेगा , जो आप चाहोगे !!
SUKHDEV BAINADA
+918561035806

Sunday, 18 September 2016

क्या यही जिन्दगी है ???

जीवन के *20* साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई *नोकरी* की खोज । ये नहीं वो , दूर नहीं पास । ऐसा करते करते *2 .. 3* नोकरियाँ छोड़ने एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।

फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का *चेक*। वह *बैंक* में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले *शून्यों* का अंतहीन खेल। *2- 3* वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और *शून्य* बढ़ गए। उम्र *27* हो गयी।

और फिर *विवाह* हो गया। जीवन की *राम कहानी* शुरू हो गयी। शुरू के *2 ..  4* साल नर्म , गुलाबी, रसीले , सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। *पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए*।

और फिर *बच्चे* के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में *पालना* झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना - बैठना, खाना - पीना, लाड - दुलार ।

समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
*इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते- करना घूमना - फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला*।

*बच्चा* बड़ा होता गया। वो *बच्चे* में व्यस्त हो गयी, मैं अपने *काम* में । घर और गाडी की *क़िस्त*, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में *शुन्य* बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी....

इतने में मैं *37* का हो गया। घर, गाडी, बैंक में *शुन्य*, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।

इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब *10वि*   *anniversary*आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही *40 42* के हो गए। बैंक में *शुन्य* बढ़ता ही गया।

एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो *गुजरे* दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"

उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि " *तुम्हे कुछ भी सूझता* *है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे* *बातो की सूझ रही है*।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।

तो फिर आया *पैंतालिसवा* साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।

बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में *शुन्य* बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका *कॉलेज* ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया *परदेश*।

उसके *बालो का काला* रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे *चश्मा* भी लग गया। मैं खुद *बुढा* हो गया। वो भी *उमरदराज* लगने लगी।

दोनों *55* से *60* की और बढ़ने लगे। बैंक के *शून्यों* की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।

अब तो *गोली दवाइयों* के दिन और समय निश्चित होने लगे। *बच्चे* बड़े होंगे तब हम *साथ* रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। *बच्चे* कब *वापिस* आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।

एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी *फोन* की घंटी बजी। लपक के *फोन* उठाया। *दूसरी तरफ बेटा था*। जिसने कहा कि उसने *शादी* कर ली और अब *परदेश* में ही रहेगा।

उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के *शून्यों* को किसी *वृद्धाश्रम* में दे देना। और *आप भी वही रह लेना*। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।

मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी पूजा ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी *"चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं*"
*वो तुरंत बोली " अभी आई"।*

मुझे विश्वास नहीं हुआ। *चेहरा ख़ुशी से चमक उठा*। आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की *चमक फीकी* पड़ गयी और मैं *निस्तेज* हो गया। हमेशा के लिए !!

उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी " *बोलो क्या बोल रहे थे*?"

लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल *ठंडा* पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।

क्षण भर को वो शून्य हो गयी।
" *क्या करू*? "

उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन *एक दो* मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। *इश्वर को प्रणाम किया*। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।

मेरा *ठंडा हाथ* अपने हाथो में लिया और बोली
" *चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे* ? *क्या बातें करनी हैं तुम्हे*?" *बोलो* !!

ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। *आँखों से अश्रु धारा बह निकली*। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।

*क्या ये ही जिन्दगी है ? ?*

सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो । जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।
#सुखदेव बैनाड़ा

Saturday, 17 September 2016

महकेगी जिंदगी

��हो सके तो मुस्कुराहट बांटिये, रिश्तों में कुछ सरसराहट बांटिये !

नीरस सी हो चली है ज़िन्दगी बहुत, थोड़ी सी इसमें शरारत बांटिये !

जहाँ भी देखो ग़म पसरा है, आँसू हैं, थोड़ी सी रिश्तों में हरारत बांटिये !

नहीं पूछता कोई भी ग़म एक - दूजे का, लोगों में थोड़ी सी ज़ियारत बांटिये !

सब भाग रहे हैं यूँ ही एक - दूजे के पीछे, अब सुकून की कोई इबादत बांटिये !

जीने का अंदाज़ न जाने कहाँ खो गया, नफ़रत छोड़ प्यार प्रेम बांटिये !

ज़िन्दगी न बीत जाये यूँ ही दुख-दर्द में, बेचैनियों को कुछ तो राहत बांटिये !!

❣ ये ज़िन्दगी ना मिलेगी दुबारा ❣
..........सुखदेव मीणा बैनाड़ा

Tuesday, 13 September 2016

कभी हमारे पास भी जहाज थे!.....

जरूर पढ़ना.......
*कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* *हमारे भी जहाज.. चला करते थे।*
*हवा में.. भी।*
*पानी में.. भी।*
*दो दुर्घटनाएं हुई।*
*सब कुछ.. ख़त्म हो गया।*
*पहली दुर्घटना*
जब क्लास में.. हवाई जहाज उड़ाया।
टीचर के सिर से.. टकराया।
स्कूल से.. निकलने की नौबत आ गई।
बहुत फजीहत हुई।
कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज बनाना और.. उडाना सब छूट गया।
*दूसरी दुर्घटना*
बारिश के मौसम में, मां ने.. अठन्नी दी।
चाय के लिए.. दूध लाना था।कोई मेहमान आया था।
हमने अठन्नी.. गली की नाली में तैरते.. अपने जहाज में.. बिठा दी।
तैरते जहाज के साथ.. हम शान से.. चल रहे थे।
ठसक के साथ।
खुशी खुशी।
अचानक..
तेज बहाब आया।
और..
जहाज.. डूब गया।
साथ में.. अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली।
मेहमान बिना चाय पीये चले गये।
फिर..
जमकर.. ठुकाई हुई।
घंटे भर.. मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा.. पानी में जहाज तैराना भी.. बंद हो गया।
आज जब.. प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें चलती हैं , तो.. उन दिनों की याद दिलाती हैं।
वो भी क्या जमाना था !
और..
आज के जमाने में..
मेरे बेटी ने...
पंद्रह हजार का मोबाइल गुमाया तो..
मां बोली ~ कोई बात नहीं ! पापा..
दूसरा दिला देंगे।
हमें अठन्नी पर.. मिली सजा याद आ गई।
फिर भी आलम यह है कि.. आज भी.. हमारे सर.. मां-बाप के चरणों में.. श्रद्धा से झुकते हैं।
औऱ हमारे बच्चे.. 'यार पापा ! यार मम्मी !
कहकर.. बात करते हैं।
हम प्रगतिशील से.. प्रगतिवान.. हो गये हैं।
कोई लौटा दे.. मेरे बीते हुए दिन।।
‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
माँ बाप की लाइफ गुजर जाती है *बेटे
की लाइफ बनाने में......*
और बेटा status_ रखता है---
"*My wife is my Life*" या My love is my life