Thursday 13 January 2022
आदिवासी मीणा (एक आदिम जनजाति)
Wednesday 31 March 2021
वो भी क्या दिन थे....
Monday 4 November 2019
गाँव मरता जाए,,बचाने कोई ना आये😭
गाँव खंडहर में तब्दील हो रहे हैं. बुज़ुर्ग माता-पिता मौत का इंतजार अथाह अकेलेपन में कर रहे हैं. जवान बेटे दूर शहरों में पाँच-दस हज़ार की नौकरियाँ कर रहे हैं और उनकी बीवियाँ पति की कमाई आने का इंतज़ार.
गांव में जो नौजवान बचे हैं वो मोबाइल पर फ़ेसबुक और वॉट्सऐप में लगे हुए हैं. इनके पास मोटरसाइकिलें भी हैं और कुछ लोग सड़क पर शौच करने इसी से जाते हैं. सरकारी स्कूल दलित बच्चों के लिए है जहाँ उन्हें खिचड़ी खाने के लिए लाया जाता है. दस बारह-हज़ार वाले टीचरों के लिए यह पार्ट टाइम जॉब है.
गाँव से सवर्णों का भयावह पलायन है. घरों में ताले लटक रहे हैं. जो गाँव में किसी वजह से बचे हैं वो ख़ुद को बदकिस्मत बताते नहीं थकते. स्कूल का मैदान कभी बच्चों और नौजवानों से शाम में भर जाता था वो किसी डरावनी जगह की तरह लगता है.
सवर्णों के पास ज़मीन थी जिसे बेच शहरों में शिफ्ट हो रहे हैं, तो पिछड़ी जातियों और दलितों में ज़मीन का मालिक बनने की हसरत है.
लोगों में मेहनत को लेकर भरोसा कम हुआ है. गाँव में विरले ही ऐसे होते थे जिनकी तोंद निकलती थी. अब यह आम बात हो गई है. डायबिटीज़ आम बीमारी बनती जा रही है. लोग शहरियों की तरह मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं.
बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाने की होड़ है लेकिन दसवीं से पहले ही 95 फ़ीसदी बच्चे बिहार बोर्ड यानी हिन्दी मीडियम में आ जाते हैं. इसका नतीजा ये हो रहा कि वो न हिन्दी सीख पा रहे न अंग्रेज़ी.
नेहरू-गांधी परिवार को लेकर वॉट्सऐप ने युवाओं के बीच ख़ूब नफ़रत बढ़ाई है. युवा मानने को तैयार नहीं होते कि फ़िरोज़ गांधी पारसी थे. नेहरू को सब देशद्रोही और पाकिस्तान परस्त मानने लगे हैं. गाँव मर रहा है. बेमौत.
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1041350826204353&id=100009883358545
सुखदेव
टोडाभीम(राजस्थान)
Friday 20 September 2019
बदलती जिंदगी
हमारी आखरी पीढ़ी होगी....
बैलगाड़ी ऊँटगाड़ी में बैठ कर मौजी खाने वाली , खेत मे बैल हल चलाते समय कुली काड़ते समय मोजी खाना, ट्रॉली का ढाला पर बैठ कर मैला या बरात में जाना, खेत मे जाते समय तार की बग्गी व बंगड़ चलना, एक साइकिल पर चार चार दोस्त को बैठा कर घूमते रहना , स्कूल की ड्रेस पहन कर रिश्तदारी में जाना, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी में फिल्म मैच सीरियल आदि देखना , सर्दियो में कोउ पर तापना, लेज से कुआँ में से पाणी खिंच कर पीना , धड़ीमार धोखा खेलना ,लंबी घोड़ी व फुसफुस घोड़ी खेलना, खाती छोड़ो व आसपास खेलना गुलाम लाखड़ी, रामलीला देखना , साइकिल का सर्कस देखना ये सब करने वाली व देखने वाली ये अपनी पीढ़ी आखरी होगी....
एक गेंद लाने के लिए सभी दोस्तों से एक एक रुपया उगाना , कपड़े की गेंद बना कर उससे खेलना, स्कूल में बोर्ड पर लिखे शब्दो को मिटाने के लिए डस्टर घर से बना कर ले जाना..काम करने के लिए पासबुक नही होने पर दोस्त से पासबुक मांगना, पेट दर्द का बयाना कर के रेस्ट में घर आ जाना , सुबह शाम अंटा खेलना , चिमनी की रोशनी में पढ़ाई व होमवर्क करना , जब छोटे बच्चे थे तब तीन पहिये के गुढ़कले पैदल पैदल चलना ऐसी कई बाते हैं जो धीरे धीरे खत्म होती जा रही हैं ,
और आनी वाली पीढ़ी तो इन सब खेल व इन बातों को बिल्कुल भूल जायेगी ...
पोस्ट पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया ....
👉सुखदेव
✍️✍️✍️✍️ जय हो ✍️✍️✍️