Tuesday 27 September 2016

जब तक तोडे़ंगे नही, तब तक छोडे़ंगे नही

मँज़िले बड़ी ज़िद्दी होती हैँ ,
हासिल कहाँ नसीब से होती हैं !
मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं ,
जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैँ !
जीत निश्चित हो तो,
कायर भी जंग लड़ लेते है !
बहादुर तो वो लोग है ,
जो हार निश्चित हो फिर भी मैदान नहीं छोड़ते !
भरोसा अगर " ईश्वर " पर है,
तो जो लिखा है तकदीर में, वो ही पाओगे !
मगर , भरोसा यदि " खुद " पर है ,
तो ईश्वर वही लिखेगा , जो आप चाहोगे !!
SUKHDEV BAINADA
+918561035806

Sunday 18 September 2016

क्या यही जिन्दगी है ???

जीवन के *20* साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई *नोकरी* की खोज । ये नहीं वो , दूर नहीं पास । ऐसा करते करते *2 .. 3* नोकरियाँ छोड़ने एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।

फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का *चेक*। वह *बैंक* में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले *शून्यों* का अंतहीन खेल। *2- 3* वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और *शून्य* बढ़ गए। उम्र *27* हो गयी।

और फिर *विवाह* हो गया। जीवन की *राम कहानी* शुरू हो गयी। शुरू के *2 ..  4* साल नर्म , गुलाबी, रसीले , सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। *पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए*।

और फिर *बच्चे* के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में *पालना* झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना - बैठना, खाना - पीना, लाड - दुलार ।

समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
*इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते- करना घूमना - फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला*।

*बच्चा* बड़ा होता गया। वो *बच्चे* में व्यस्त हो गयी, मैं अपने *काम* में । घर और गाडी की *क़िस्त*, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में *शुन्य* बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी....

इतने में मैं *37* का हो गया। घर, गाडी, बैंक में *शुन्य*, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।

इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब *10वि*   *anniversary*आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही *40 42* के हो गए। बैंक में *शुन्य* बढ़ता ही गया।

एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो *गुजरे* दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"

उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि " *तुम्हे कुछ भी सूझता* *है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे* *बातो की सूझ रही है*।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।

तो फिर आया *पैंतालिसवा* साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।

बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में *शुन्य* बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका *कॉलेज* ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया *परदेश*।

उसके *बालो का काला* रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे *चश्मा* भी लग गया। मैं खुद *बुढा* हो गया। वो भी *उमरदराज* लगने लगी।

दोनों *55* से *60* की और बढ़ने लगे। बैंक के *शून्यों* की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।

अब तो *गोली दवाइयों* के दिन और समय निश्चित होने लगे। *बच्चे* बड़े होंगे तब हम *साथ* रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। *बच्चे* कब *वापिस* आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।

एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी *फोन* की घंटी बजी। लपक के *फोन* उठाया। *दूसरी तरफ बेटा था*। जिसने कहा कि उसने *शादी* कर ली और अब *परदेश* में ही रहेगा।

उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के *शून्यों* को किसी *वृद्धाश्रम* में दे देना। और *आप भी वही रह लेना*। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।

मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी पूजा ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी *"चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं*"
*वो तुरंत बोली " अभी आई"।*

मुझे विश्वास नहीं हुआ। *चेहरा ख़ुशी से चमक उठा*। आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की *चमक फीकी* पड़ गयी और मैं *निस्तेज* हो गया। हमेशा के लिए !!

उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी " *बोलो क्या बोल रहे थे*?"

लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल *ठंडा* पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।

क्षण भर को वो शून्य हो गयी।
" *क्या करू*? "

उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन *एक दो* मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। *इश्वर को प्रणाम किया*। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।

मेरा *ठंडा हाथ* अपने हाथो में लिया और बोली
" *चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे* ? *क्या बातें करनी हैं तुम्हे*?" *बोलो* !!

ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। *आँखों से अश्रु धारा बह निकली*। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।

*क्या ये ही जिन्दगी है ? ?*

सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो । जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।
#सुखदेव बैनाड़ा

Saturday 17 September 2016

महकेगी जिंदगी

��हो सके तो मुस्कुराहट बांटिये, रिश्तों में कुछ सरसराहट बांटिये !

नीरस सी हो चली है ज़िन्दगी बहुत, थोड़ी सी इसमें शरारत बांटिये !

जहाँ भी देखो ग़म पसरा है, आँसू हैं, थोड़ी सी रिश्तों में हरारत बांटिये !

नहीं पूछता कोई भी ग़म एक - दूजे का, लोगों में थोड़ी सी ज़ियारत बांटिये !

सब भाग रहे हैं यूँ ही एक - दूजे के पीछे, अब सुकून की कोई इबादत बांटिये !

जीने का अंदाज़ न जाने कहाँ खो गया, नफ़रत छोड़ प्यार प्रेम बांटिये !

ज़िन्दगी न बीत जाये यूँ ही दुख-दर्द में, बेचैनियों को कुछ तो राहत बांटिये !!

❣ ये ज़िन्दगी ना मिलेगी दुबारा ❣
..........सुखदेव मीणा बैनाड़ा

Tuesday 13 September 2016

कभी हमारे पास भी जहाज थे!.....

जरूर पढ़ना.......
*कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* *हमारे भी जहाज.. चला करते थे।*
*हवा में.. भी।*
*पानी में.. भी।*
*दो दुर्घटनाएं हुई।*
*सब कुछ.. ख़त्म हो गया।*
*पहली दुर्घटना*
जब क्लास में.. हवाई जहाज उड़ाया।
टीचर के सिर से.. टकराया।
स्कूल से.. निकलने की नौबत आ गई।
बहुत फजीहत हुई।
कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज बनाना और.. उडाना सब छूट गया।
*दूसरी दुर्घटना*
बारिश के मौसम में, मां ने.. अठन्नी दी।
चाय के लिए.. दूध लाना था।कोई मेहमान आया था।
हमने अठन्नी.. गली की नाली में तैरते.. अपने जहाज में.. बिठा दी।
तैरते जहाज के साथ.. हम शान से.. चल रहे थे।
ठसक के साथ।
खुशी खुशी।
अचानक..
तेज बहाब आया।
और..
जहाज.. डूब गया।
साथ में.. अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली।
मेहमान बिना चाय पीये चले गये।
फिर..
जमकर.. ठुकाई हुई।
घंटे भर.. मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा.. पानी में जहाज तैराना भी.. बंद हो गया।
आज जब.. प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें चलती हैं , तो.. उन दिनों की याद दिलाती हैं।
वो भी क्या जमाना था !
और..
आज के जमाने में..
मेरे बेटी ने...
पंद्रह हजार का मोबाइल गुमाया तो..
मां बोली ~ कोई बात नहीं ! पापा..
दूसरा दिला देंगे।
हमें अठन्नी पर.. मिली सजा याद आ गई।
फिर भी आलम यह है कि.. आज भी.. हमारे सर.. मां-बाप के चरणों में.. श्रद्धा से झुकते हैं।
औऱ हमारे बच्चे.. 'यार पापा ! यार मम्मी !
कहकर.. बात करते हैं।
हम प्रगतिशील से.. प्रगतिवान.. हो गये हैं।
कोई लौटा दे.. मेरे बीते हुए दिन।।
‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
माँ बाप की लाइफ गुजर जाती है *बेटे
की लाइफ बनाने में......*
और बेटा status_ रखता है---
"*My wife is my Life*" या My love is my life

Sunday 11 September 2016

जीत पक्की है|

✨ *जीत पक्की है* ✨

कुछ करना है, तो डटकर चल।
           *थोड़ा दुनियां से हटकर चल*।
लीक पर तो सभी चल लेते है,
      *कभी इतिहास को पलटकर चल*।
बिना काम के मुकाम कैसा?
          *बिना मेहनत के, दाम कैसा*?
जब तक ना हाँसिल हो मंज़िल
        *तो राह में, राही आराम कैसा*?
अर्जुन सा, निशाना रख, मन में,
          *ना कोई बहाना रख*।
जो लक्ष्य सामने है, 
बस उसी पे अपना ठिकाना रख।
          *सोच मत, साकार कर*,
अपने कर्मो से प्यार कर।
          *मिलेंगा तेरी मेहनत का फल*,
किसी और का ना इंतज़ार कर।
    *जो चले थे अकेले*
       *उनके पीछे आज मेले हैं*।
    जो करते रहे इंतज़ार उनकी
  जिंदगी में आज भी झमेले है!


Saturday 3 September 2016

बाबासाहेब का संदेश

����
सुन ऐ नादाँ, मुझे भी कोई
दौलत की कमी नही होती,
अगर मुझको तेरे सम्मान
की कोई फिकर नही होती!
गगन को चूम रहा होता,
मेरा भी ऊंचा सा बंगला,
लड़ाई जो तेरे हकों की,
मैने कभी लड़ी नही होती!
जिये होती मेरी भी औलादें,
ऐश और आराम का जीवन,
तेरे बच्चो की खुशियो की,
कहानी जो लिखी नही होती!
छपी होती मेरी भी तस्वीरें,
कागज़ो के इन टुकड़ो पर,
तेरी खातिर जो मनुओ से,
दुश्मनी मैने करी नही होती!
जहां चाहत थी आज़ादी की,
बही नदियों से खून की धारा,
कद्र होती आजादी की तुझे,
जो बैठे-बैठे न मिली होती!
बड़ा अफसोस है कि मेरा,
रह गया अधूरा इक सपना,
जो मेरी औलादो ने मिलकर,
मेरी नीलामी की नही होती!
✊��क्रांतिकारी जय भीम

Thursday 1 September 2016

मेहनत रंग लायेगी

उम्मीद है कि दीन - दुनिया को भुलाकर आप पूरी मेहनत से पढ़ रहे होंगे । आपके लिये 5 गुणा 7 के घरौंदे मे ही पूरा विश्व समाया रहता है , तिस पर भी आप उसमे ग्लोब भी अमवा देते है । आपके लिये भारत और विश्व का मानचित्र ही कैटरीना और ऐंजेलिना जोली होता है ।
कूकर की सीटियां भी धीरे - धीरे अपनी आवाज़ खो देती है , लेकिन आपकी जद्दोजहद जारी रहती है । सिलेंडर को उल्टा करके गैस निकालने की जो दुर्लभ कला आपको आती है , उस पर स्वीडिश अकेडमी देर - सबेर आपको नोबेल से भी नवाजेगा ।
फ़िर भी आप लोगों के मांझी वाले धैर्य को कुचलने के लिये कुछ पुराने चावल एक मुहिम छेड़े रहते है ।जो आपसे कहते है कि ये एक लम्बी साधना है , ये आपका बहुत समय लेगी । मेरी आपसे गुजारिश है कि उन ALL INDIA FRUSTRATED UNION के सदस्यों को सादर प्रणाम करते हुए उनकी सलाह को 'स्वच्छ भारत अभियान ' वाले कूडे के ढेर मे डाल दिया करिये ।
आपके माँ - बाप ने अनेकों जतन से आपको इस मुकाम तक पहुँचाया है । खुद 5 किलोमीटर धूप मे पैदल चलकर बाजार जाने वाले वे महापुरुष आपको फोन पर ये कहते है कि बेटा ऑटो से जाना वरना लू लग जायेगी ।नोकिया 1108 चलाकर आपको सैमसंग गैलेक्सी ग्रांड दिलवाते है ।अपनी आँखो से भी आपके लिये सपने देखते है ।
तो प्लीज़ उन आँखो के सपनो को दफन मत होने देना । और मुस्कराते हुए कहना कि "जब तक तोडेंगे नही तब.तक छोडेंगे नही "।

जय भीम: जय भारत

बहुत हो चुकी है बर्बादी l
सोच भुला दो अब मनुवादी ll
मंदिर और शिवालय छोड़ो l
विद्यालय से नाता जोड़ो ll
संविधान को सब अपनाओ l
बाबा की धुनि मे धुनि लाओ ll
बाबा ने उपहार दिये हैं l
जीने के अधिकार दिये हैं ll
नारी को सम्मान दिया है l
भारत को संविधान दिया है ll
भाषण की आजादी दी है ।
आरक्षण व खादी दी है ll
हम बाबा को भूल गये हैं l
अपने मद मे झूल गये हैं ll
भीम मिशन से मुख मोड़े हैं l
बाबा के सपने तोड़े हैं ll
हम कितने खुद कामी निकले l
कितने नमक हरामी निकले ll
बाबा ने थी जॉब दिलायी l
हमने रामायण पढ़वायी ll
अमरनाथ यात्रा कर आये l
घर में वामन खूब जिमाये ll
घूम के आये वैष्णों माता l
घर पर करवाया जगराता ll
हर महीना गंगा पर जाते l
हर पूर्णिमा हवन कराते ll
हाथ कलावा बांधे फिरते l
लंम्बा तिलक लगाके चलते ll
सत्संगों मे लुटने जाते l
मंदिर में हैं धक्के खाते ll
ये अपनों को भूल गये हैं l
खुदगर्जी मे झूल गये हैं ll
पाखंडो से नाता तोड़ो l
बौद्ध धम्म से खुद को जोड़ो ll
बच्चों को अच्छी शिक्षा दो l
उनको बौद्धधम्म दीक्षा दो ll
आधिकारों को लड़ना सीखो l
अब दुश्मन से भिड़ना सीखो ll
शेरों से दुनिया डरती है l
बकरों पर छूरी चलती है ll
अब शेरों साहस दिखा दो l
अपना भी इतिहास बना दो ll
भीम मिशन साकार बना दो l
दिल्ली में सरकार बना दो ll
जय भीम जय भारत