Wednesday 22 June 2016

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1.पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है..
AC के इस ज़माने में रोशनदान कौन रखता है..
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अपने घर की कलह से फुरसत मिले..तो सुने..
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..
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जहां, जब, जिसका, जी चाहा थूक दिया..
आजकल हाथों में पीकदान कौन रखता है..
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हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..
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बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां बाप को..
आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है.

2. तू जिंदगी को जी,
उसे समझने की कोशिश ना कर..
चलते वक़्त के साथ तू भी चल,
वक्त को बदलने की कोशिश न कर.
दिल खोल कर साँस ले,
अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर..
कुछ बाते भगवान् पर छोड़ दे
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर..

3:
आंसुओं को बहुत समझाया तन्हाई मे आया करो,!
महफिल मे आकर मेरा मजाक ना बनाया करो!
आँसूं बोले . . .

इतने लोग के बीच भी आपको तन्हा पाता हूँ,
बस इसलिए साथ निभाने चले आता हूँ !

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया...
हम सीख न पाये 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया !

बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में !

चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं...
तुम हमें ढुंढो...
हम तुम्हे ढुंढते हैं..

4:
ऐसा ही सत्य कहना चाहिए जो दुसरों की प्रसन्नता का कारण हो ।
जो सत्य दुसरों के दु:ख का कारण हो उस संबंध मे बुद्धिशाली व्यक्ति को मौन रहना चाहिए.....
बहुत ही आसान है जमीं पर आलीशान भवनों का निर्माण कर लेना .....

दिल मे जगह बनाने मे जिन्दगी गुजर जाया करती है �� 
�� �� �� �� �� �� �� �� ��

Friday 10 June 2016

SUKHDEV BAINADA:Youtube

                                                                

                      SuKhDeV BaInAdA :Youtube

















राजस्थानी लोकगीत

                                            RAJASTHANI LOK GEET


 इण लहेरिये रा नौ सौ रुपया रोकड़ा सा
म्हाने ल्याईदो नी बादिला ढोला लहेरियो सा
म्हाने ल्याईदो नी बाईसा रा बीरा लहेरियो सा
म्हाने ल्याईदो ल्याईदो ल्याईदो ढोलालहेरियो सा
म्हाने ल्याईदो नी बादिला ढोला लहेरियो सा
म्हारा सुसराजी तो दिल्ली रा राजवी सा
म्हारा सासूजी तो गढ़ रा मालक सा
इण लहेरिये रा नौ सौ रुपया रोकड़ा सा
म्हाने ल्याईदो ल्याईदो ल्याईदो ढोलालहेरियो सा..... More




कविता कोश

1.
'अनमोल' अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें

हम से ख़ता हुई है कि इंसान हम भी हैं
नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें

अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं
किससे वफ़ा निभाएं तो किससे जफ़ा करें

नंबर मिलाया फ़ोन पे दीदार कर लिया
मिलना हुआ है सह्‌ल तो अक्सर मिला करें

तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं
तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें

दी है क़सम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो कैसे ये हम मोजिज़ा करें 

2.
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया

कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया

सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया

कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया  

3.
अकेले ही हमें दुनिया के हर मंज़र में रहना है
अभी कुछ दिन यूँ दीवार-ओ-बाम-ओ-दर1 में रहना है

न जाने किस हवस के ख़्वाब दिखलाता है वह मुझको
अभी कुछ और ही सौदा2 हमारे सर में रहना है

हमारी ख़्वाहिशें अपनी जगह पर सच सही लेकिन
वो मूरत है, उसे यूँ ही सदा पत्थर में रहना है

भला मालूम है किसको दिले बेताब की मंज़िल
कभी इस दर पे रहना है कभी उस घर में रहना है

बजुज़3 मश्क-ए-सुखन4 कुछ काम भी अपना नही शायद
सो अब ता-उम्र हमको बस इसी चक्कर में रहना है 

4.
 ’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’

चिर अतीत में ’आज’ समाया,
उस दिन का सब साज समाया,
किंतु प्रतिक्षण गूँज रहे हैं नभ में वे कुछ शब्द तुम्हारे!
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’

लहरों में मचला यौवन था,
तुम थीं, मैं था, जग निर्जन था,
सागर में हम कूद पड़े थे भूल जगत के कूल किनारे!
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’

साँसों में अटका जीवन है,
जीवन में एकाकीपन है,
’सागर की बस याद दिलाते नयनों में दो जल-कण खारे!’
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’