1.
'अनमोल' अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें
हम से ख़ता हुई है कि इंसान हम भी हैं
नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें
अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं
किससे वफ़ा निभाएं तो किससे जफ़ा करें
नंबर मिलाया फ़ोन पे दीदार कर लिया
मिलना हुआ है सह्ल तो अक्सर मिला करें
तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं
तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें
दी है क़सम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो कैसे ये हम मोजिज़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें
हम से ख़ता हुई है कि इंसान हम भी हैं
नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें
अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं
किससे वफ़ा निभाएं तो किससे जफ़ा करें
नंबर मिलाया फ़ोन पे दीदार कर लिया
मिलना हुआ है सह्ल तो अक्सर मिला करें
तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं
तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें
दी है क़सम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो कैसे ये हम मोजिज़ा करें
2.
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया
सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया
सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया
3.
अकेले ही हमें दुनिया के हर मंज़र में रहना है
अभी कुछ दिन यूँ दीवार-ओ-बाम-ओ-दर1 में रहना है
न जाने किस हवस के ख़्वाब दिखलाता है वह मुझको
अभी कुछ और ही सौदा2 हमारे सर में रहना है
हमारी ख़्वाहिशें अपनी जगह पर सच सही लेकिन
वो मूरत है, उसे यूँ ही सदा पत्थर में रहना है
भला मालूम है किसको दिले बेताब की मंज़िल
कभी इस दर पे रहना है कभी उस घर में रहना है
बजुज़3 मश्क-ए-सुखन4 कुछ काम भी अपना नही शायद
सो अब ता-उम्र हमको बस इसी चक्कर में रहना है
अभी कुछ दिन यूँ दीवार-ओ-बाम-ओ-दर1 में रहना है
न जाने किस हवस के ख़्वाब दिखलाता है वह मुझको
अभी कुछ और ही सौदा2 हमारे सर में रहना है
हमारी ख़्वाहिशें अपनी जगह पर सच सही लेकिन
वो मूरत है, उसे यूँ ही सदा पत्थर में रहना है
भला मालूम है किसको दिले बेताब की मंज़िल
कभी इस दर पे रहना है कभी उस घर में रहना है
बजुज़3 मश्क-ए-सुखन4 कुछ काम भी अपना नही शायद
सो अब ता-उम्र हमको बस इसी चक्कर में रहना है
4.
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
चिर अतीत में ’आज’ समाया,
उस दिन का सब साज समाया,
किंतु प्रतिक्षण गूँज रहे हैं नभ में वे कुछ शब्द तुम्हारे!
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
लहरों में मचला यौवन था,
तुम थीं, मैं था, जग निर्जन था,
सागर में हम कूद पड़े थे भूल जगत के कूल किनारे!
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
साँसों में अटका जीवन है,
जीवन में एकाकीपन है,
’सागर की बस याद दिलाते नयनों में दो जल-कण खारे!’
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
चिर अतीत में ’आज’ समाया,
उस दिन का सब साज समाया,
किंतु प्रतिक्षण गूँज रहे हैं नभ में वे कुछ शब्द तुम्हारे!
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
लहरों में मचला यौवन था,
तुम थीं, मैं था, जग निर्जन था,
सागर में हम कूद पड़े थे भूल जगत के कूल किनारे!
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
साँसों में अटका जीवन है,
जीवन में एकाकीपन है,
’सागर की बस याद दिलाते नयनों में दो जल-कण खारे!’
’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’
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