किताबे-शौक़ में क्या-क्या निशानियाँ रख दीं
कहीं पे फूल, कहीं हमने तितलियाँ रख दीं।
कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे
छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं।
यही कि हाथ हमारे भी हो गए ज़ख़्मी
गुलों के शौक में काँटों पे उंगलियाँ रख दीं।
किताबे-शौक़ में क्या-क्या निशानियाँ रख दीं
कहीं पे फूल, कहीं हमने तितलियाँ रख दीं।
कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे
छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं।
यही कि हाथ हमारे भी हो गए ज़ख़्मी
गुलों के शौक में काँटों पे उंगलियाँ रख दीं।
मेरे अजनबी हमसफ़र.... sUkHdEv
वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी..
. उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो..कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही।
शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी।
देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था।
मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा...फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया...
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लगभग 1 घंटे के बाद टीटी आया और उसे हिलाकर उठाया।
“कहाँ जाना है बेटा”
“अंकल दिल्ली तक जाना है”
“टिकट है ?”
“नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”
“अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा”
“ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”
“ये तो गलत बात है बेटा …..पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी”
“सॉरी अंकल …. मैं अलगे स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई … और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी….” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी टीटी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे दिल्ली तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन देदी।
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टीटी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर हंस तो नहीं रहा था.
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.थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं …
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दिल्ली स्टेशन पर कोई जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे, वरना वो समय पर गाँव नहीं पहुँच पायेगी।
. मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था, दिल कर रहा था कि उसे पैसे दे दूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो … और रो मत ….
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लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था। उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे।
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बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने लगे जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना कहलाऊं।
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फिर मैं एक पेपर पर नोट लिखा,“बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए देख रहा हूँ, जानता हूँ कि एक अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही है इसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ , तुम्हे कोई अहसान न लगे इसलिए मेरा एड्रेस भी लिख रहा हूँ …...
.जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो …. वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो …
.. अजनबी हमसफ़र ”
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एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे भेजा है।
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नोट मिलते ही उसने दो-तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई उसकी तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा।
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लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था...थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस की।
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लगा जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था। उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया ….
फिर चादर का कोना हटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर जैसे सांस ले रहा था मैं..
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.पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी। जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी … ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर ही रुकी थी। और उस सीट पर एक छोटा सा नोट रखा था ….. मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया ...
और उस पर लिखा था … Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र …..आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …..
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मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए आनन – फानन में घर जा रही हूँ। आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी …..
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उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ ….जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी। उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे ….
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. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाये ….
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. आज 1 साल बाद एक ख़त मिला ….आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ …. लेकिन ख़त के ज़रिये नहीं आपसे मिलकर … नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था …. और आखिर में लिखा था ...
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. तुम्हारी अजनबी हमसफ़र ……
अगर खिलाफ है होने दो, चाँद थोड़ी है
ये सब धुआ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
मुझे खबर है के दुश्मन भी कम नहीं
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद है कल नहीं होंगे
किरायेदार है ज़ाती, मकान थोड़ी है
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है-
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साजिशे हवाऐं इस कद्र करने लगी है
पक्तियाँ शाख से टूटकर गिरने लगी है।
जहर घुलता जा रहा है फिजाँओ मे
कि साँस भी बार बार उखाड़ने लगी है।
मिलकर घर का बोझ उठाएं हुऐ थी
वो चार दीवारे भी अब हिलने लगी है।
चिराग अंधेरो से लड़ते रहे रात भर
रात रौशनी के साये मे पलने लगी है।
कभी मुस्कान थी,हर दिल मे भरी
अब माथे मे सलवटे पड़ने लगी है।
सारा दिन धुंध से सूरज लड़ता रहा
कि अचानक फिर शाम ढलने लगी है।
अजब गजब संस्कृति और दिखावा
पैदा होते ही बेटा हुआ तो कुआं पूजन , बेटी हुई तो - या होई है चुडेल ।
माँ-बाप के लिए दोनो बेटा समान , शादी होते ही न्यारा , बडा बेटा रखेगा माँ को , छोटा बेटा बाप को , कर दिया अलग अलग , न्यारा तो एक दिन होना ही है ।
बहु घूघट मे गाली दे तो संस्कृति , घूघट ना रखकर बाप समान इज्जत दे तो , पडौसियो के ताने , क्योंकि संस्कृति ।
किसी गरीब के बच्चे के लिए 5000 रूपये पढाई के लिए देने बाला कोई नही, लेकिन नुक्ते के लिए 50000 हजार देने बाले हजारों , संस्कृति है भैया ।
अनपढ़ बेटी के लिए रिश्ता ढूंढ़ने मे पाँच साल लगा दिये , किसी की बेटी को जयपुर पढने भैज दिया तो ताने , बिगड़ जायेगी । संस्कृति ।
भैंस ने दुध नही दिया , दुध फट गया , बेटा नौकरी नही लगा , बुखार , पेट मे दर्द , अऊत , भूत , जिंद , सबका उपचार है , झाडा फूख । या फिर बालाजी के पाँच किलो घी । संस्कृति ।
आदमी दिनभर ताश खैलौ दुकान या चौराहे पर , घर मे सही ढंग की सब्जी ना बणी तो पिटाई , संस्कृति - क्योंकि बामणा का ने कही है पति परमेश्वर होता है ।
बच्चे सर्दी मे ठिठरते रहो , लेकिन बाप शाम को दारू अवश्य पियेगा । सोमरस है भैया , वेदों मे लिखा है ।
बेटा किसी की लड़की को भले घर ही ले आऔ , बेटी तो नज़र निचे करके ही जायेगी । क्योंकि संस्कृति है भैया । और फिर अपणा तो बेटा है , बेटी बाडा जाणै ।
जितना प्रचार किसी गरीब के बेटे का नौकरी लगने पर नही होता , उससे ज्यादा प्रचार 500 रूपये तीन पत्ती मे जीतने बाले का होता है ।
गरीब की लुगाई प्रसब पीडा मे मर जाये , कोई बडी बात नही । अमीर की भैंस ने दुध नही दिया , हजारों आदमी डाँक्टर बणकर पहुँच जायेंगे ।
ससुर , बहु को गाली देकर घर से निकाल देगा , कोई बडी बात नही । लेकिन बहुत ने शर्ट की जगह सिर्फ कब्जा या ब्लाउज पहन रखा है । पूरे गाँव मे प्रचार होगा । संस्कृति है ।
बूढ़े माँ-बाप को कोई रोटी मत दो , मकान से निकालकर टूटे छप्पर मे डाल दो , बच्चों की शादी के समय आनन फानन मे नहला धुलाकर समाज के सामने ढोग कर दो , बहु बेटी खूब गाली दो , कोई नही बोलेगा । लेकिन मरने पर यदि नुक्ता ना किया तो ताने देकर 10 साल बाद भी करा लेगे । संस्कृति ।
बहु यदि महाडायन है किसी ने गलती से कुछ कह दिया , कर दिया केस , दहेज का । सब गाली देणे आ जायेंगे , बिना मामले को समझे । लेकिन बहु दिनभर माँ-बाप से मीठी मीठी गाली देने पर सब चुपचाप । संस्कृति ।
भात जामणा , 30 लूगडी , 15 बेस , और 25 धौती । पहनेगा कोई नही । लेकिन भेजना जरूर पडेगा । पता सबको है ये व्यर्थ है लेकिन किसी ने बोल दिया तो - छौरा पिढ्यौ तो है पण गुण्यौ कौन । संस्कृति ।
घर मे पल्सर खडी है चलाणे के लिए , लेकिन बहु बेटी रात मे निकलती है झाडियो मे शौच के लिए । (खैर शौचालय निर्माण और इसके महत्व मे हमारा समाज बहुत आगे है इसका हमे गर्व है )
भाई के बेटों को कभी दो रूपये नही लगाये पढाई के लिए , लेकिन भाई जमीन बिकने पर , खरीदकर , पूरा श्रेय ले लेगे ,।
बडे भाईसाहब ने छौटो को पढाकर पूरी जिंदगी दाव पर लगा दी , लेकिन छोटे की लुगाई आते ही , कभी भाई बच्चों को दो रूपये ना दे सका । पत्नी व्रता नारा है भैया । खुद के भी बच्चे है ।
लड़का खुले सांड की तरह चौराहे पर लड़की छेडता हो कोई बुराई नही । लड़की ने जींस क्या पहन लिया , माँ-बाप का मरण आ गया ।
समाज मे पटेलो ने पंचायत से शादी मे dj बंद करा दिये , लेकिन दहेज खुले आम चालू रहेगा ।
किसी महिला का सुड्डा गायन फूहड हो गया , लेकिन टीबी मे चड्डी पहने हिरोईन फूहड नही शान है ।
किसी औरत का पति मर गया तो उसपर हर तरीके के इल्जाम लगाने हजारों पहुँच जायेंगे , तरह तरह की बातें करेंगे , लेकिन उसकी सहायता की बारी आई तो काम के बदले काम । वाह रे भगवान ।
माँ-बाप ने अपने खून पसीने से बेटे को दिल्ली मे अफसर बणा दिया , और बेटे ने एक पल बोल दिया - तुममे दिमाग नही है चुपचाप भगवान् का नाम लो , ।
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चाहे शब्द गलत हो ये मेघ-कलम के लेकिन भावना गलत ना हो सकती .,........
दक्षिण भारत से सिर्फ लेखन ही सही, धरातलीय समाजसेवा नही हो सकती .....,!