Sunday 10 January 2016

SUKHDEV MEENA BAINADA

मुझे हमेशा से ही घूमने का शौक रहा है। मीणा समाज के ग्रामीण इलाक़ों का भ्रमण करने के बाद मैं एक ही निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मीणा समाज के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को घर का मुखिया नहीं माना जाता है। मीणा समाज की महिलाओं पर बंदिशें अधिक हैं। हमारे समाज के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं घूंघट करने को बाध्य हैं। हमारे समाज की महिलाओं को आर्थिक रूप से घर के मुखिया पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है। केवल मजदूरी करने वाली महिलाएं ही इन ग्रामीण इलाकों में घर से अकेले बाहर निकलती हैं। अन्य कोई भी महिला घर से अकेले बाहर नहीं जा सकती है। इसके सामाजिक और पारंपरिक दोनों ही कारण हैं। यही वहज है कि हमारे समाज के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं आर्थिक, मानसिक और शारीरिक तौर पर कमजोर हो जाती हैं। उन्हें अर्थ के अभाव में चार दीवारों के भीतर बंद रहने को मजबूर कर दिया जाता है। इन ग्रामीण इलाकों में अब भी महिलाओं को उच्च शिक्षा नहीं दी जाती है। न ही किसी कार्य में उनसे सहमति लेने की जरूरत समझी जाती है। ये महिलाएं दीवार के पीछे रहकर, मुंह से कुछ न कहकर, केवल सिर हिलाने को मजबूर होती हैं।

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महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक स्तर पर स्वतंत्र नहीं होना उन्हें ग्रामीण इलाकों में मुखिया न माने जाने का संभवत: प्रमुख कारण है। महिला को मुखिया के तौर पर स्वीकार न करने के कारण उसका आर्थिक रूप से कमजोर होना है। आर्थिक अभाव के कारण महिला पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर कमजोर कर दी जाती है।

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महिलाओं को सशक्त होने के लिए पहले उनका शिक्षित होना जरूरी है। शिक्षित होने से महिलाओं का आत्मबल मजबूत होगा। महिलाओं को सही और गलत का पता लग पायेगा। वे समझ पायेंगी कि उनके लिए सही क्या है, और गलत क्या है? इसके लिए जरूरी है कि सरकार जमीनी तौर पर महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त करने की योजनाएं बनाए। जो महिलाएं बंदिशों के चलते घर से बाहर नहीं आ सकती, उनके घर तक योजनाओं को पहुंचाया जाएँ। उन्हें समाज से जोड़ें और उनकी भूमिका सुनिश्चित कर सशक्त बनाया जाये।

कोई महिला परिवार की मुखिया न भी बने, लेकिन वह इतनी आत्मनिर्भर जरूर हो कि समय आने पर अपना और अपने परिवार का सम्मान पूर्वक पालन-पोषण कर सके। तब ही हमारे समाज की ग्रामीण महिलाएं सशक्त हो पायेगी।


आपका बेटा तो हमेशा आपकी सुरक्षित छाँव में रहेगा लेकिन बेटी को तो पराये घर भेजने की जल्दीबाजी रहती है। लेकिन पराये घर भेजने से पहले हो सके तो अपनी बेटी को ऐसी 2 आँखे दे देना जो आपका सन्देश पढ़ सके, 1 कलम भी उसे दे देना जिससे वो अपनी बात आप तक पहुँचा सके और एक उपलब्धि भी दे देना जो उसका सम्मान बढ़ा सके...!



3 comments:

  1. अगर आदिवासी समुदाय से तालुक रखने और जल-जंगल-जमीन की रक्षा की बातें करने की वजह से अगर कोई शख्स मुझे नक्सली कहता है तो मुझे गर्व है कि मैं नक्सली हूँ।
    लाल सलाम

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