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पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामा...
न तेरी अदा समझ में आती है ना आदत... ऐ ज़िन्दगी... तू हर रोज़ नयी सी...हम हर-रोज़ वही उलझे से..!!!
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